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घर में कमाने वाले सिर्फ पापा थे. एक उम्र के बाद मुझे लगा कि जल्दी से काम मिल जाए तो पापा की मदद करुंगा. फैमिली को स्पोर्ट करना चाहता था. इन फिल्मों में एक आम आदमी को स्टार बनते हुए देखा था. इन फिल्मी कहानियों की तरह हकीकत में भी किसी एक मामूली इंसान की जिंदगी में भी हो सकता है, इस पर मुझे यकीन नहीं था. पर वाकई यह असल जिंदगी में भी हो सकता है.
म्यूजिक में मेरी दिलचस्पी अंकल की वजह से हुई और धीरे- धीरे यह दिलचस्पी दिवानगी में बदल गई. मैं जानता था कि इस इंडस्ट्री में कभी बहुत तो कभी बिल्कुल पैसे नहीं होते. कब पैसे आएंगे इस बारे में पता नहीं होता था. मेंरे लिए वह समय बहुत प्रेशर और डिप्रेशन वाला था. सबकुछ ब्लैकआउट-सा हो जाता था कि क्या करुं कैसे करुं. मैंने कॉलेज के दौरान छोटी जगहों पर काम किया, पार्ट टाईम जॉब की और छोटे-छोटे म्यूजिकल शो भी किए, जिससे मैं घर चलाने में हाथ बंटा सकूं वह मेरे जीवन का सबसे कडवा और बुरा दौर था. एक सडन सफर था …..जो जल्दी से हो गया. मुझे पता भी नही चला कि क्या हुआ और 6 महीनों में मेरी पूरी दुनिया बदल गई
टेलीविजन की रियलटी ट्रिप ने मुझ जैसे एक सिंपल ब्वॉय को स्टार बना दिया. अचानक से इतना पॉपुलर हो जाना एक आदमी के लिए कितना मुश्किल है ये मैं जानता हूं. लोग मुझे देखने के लिए पागल होते थे. मेंरे साथ स्ट्रगल करने वाले ये सपना देखते थे, जो लाइफ मैं उस वक्त जी रहा था. मेरी बहुत डिफरेंट जर्नी थी लेकिन अचानक मिली पॉपुलैरिटी ही रियल चैलेंज बन गई.
अचानक मिली सक्सेस को सभालना मुश्किल होता है और यह पाठ मैने अपनी गलतियों से सीखा है. मैझे कभी रियलाइज नहीं हुआ कि क्या कर रहा हूं. जब सक्सेस की शुरुआत हुई तो बस काम करता गया कभी पीछे मुडकर नही देखा.
दो साल के बाद रियलाइज हुआ कि मैंने कितनी गलतियां की हैं. अब उन्हें सही करने की कोशिश में जुटा हुआ हूं. लेकिन गलतियां सुधारने में समय लगता है. इंडियन आयडल से पहले मैने कभी नही सोचा था कि 6 महीनों के बाद मेंरे साथ क्या होगा ? इस पूरे सफर ने मुझे बहुत कुछ सिखाया. आडियंस की भीड को फेस करना , लोगों को ऑब्जर्व करना और बिना ऑवर कांफिसेंस के काम करना सब सीखा. मैंने साल भर घर पर खाली बैठ कर बिताया है और सक्सेस के बाद घर जाने का भी समय नहीं मिलता. सक्सेस अपने साथ कई चीजे लाती हैं बस उनका सामना करना आना चाहिए. कामयाबी के आसमान में उडने के साथ मैं अपनी जडों से जुडा रहना चाहता हूं.
Published in INEXT, Dec 2009 – Foundation Week.
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